Happy Raksha Bandhan 2020: रक्षाबंधन स्पेशल 2020
ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत बताते हैं कि रक्षाबंधन पर पूर्णिमा के साथ-साथ सावन का आखिरी सोमवार होगा। इसके अलावा, पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इससे रक्षाबंधन के दिन की शुभता बहुत बढ़ जाएगी। पंडित विनोद त्रिपाठी कहते हैं कि इस दिन सुबह 9 बजकर 28 मिनट तक भद्रा रहेगी। सभी बहनें सुबह 9:28 पर भद्रा समाप्त होने के बाद ही अपने भाइयों को राखी बांधें। भद्रा की समाप्ति के साथ साथ ही सोमवार का राहुकाल भी निकल चुका होगा।
इसमें आयुष्मान योग को सर्वार्थ सिद्धि योग बुधादित्य योग व शनि चंद्र के मिलन से विश्व योग यानी चतुर्योग बन रहे हैं।
पुराणों में यह है कथा: ऐसी कथा है कि एक समय जब इंद्र युद्ध में दानवों से पराजित होने लगे तो उनकी पत्नी इन्द्राणी ने एक रक्षा सूत्र इंद्र की कलाई पर बांधा था जिससे इंद्र को विजय प्राप्त हुई थी। देवासुर संग्राम में देवी भगवती ने देवताओं के मौली बांधी थी। तभी से रक्षा सूत्र बंधने की यह परंपरा चली आ रही है।
भाई बहन एक दूसरे के साथ खेलते, लड़ते-झगड़ते बड़े होते हैं और यदि उम्र में अधिक अंतर होता है तो एक दूसरे का मार्गदर्शन और आदर्श साबित होते हैं। खट्टी मीठी यादों को साथ लिए, एक दूसरे के साथ कई शैतानियों का अंजाम देता यह रिश्ता उम्र बढ़ने के साथ मजबूत होता है और जीवन के विभिन्न चरणों से गुजरता है। बड़े भाई अपनी बहनों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। बहुधा माता या पिता के न रहने पर भाई ही बहन के लिये उनका स्थान लेकर उन्हें प्रेम और दुलार देते हैं। इसी प्रकार बहनें जो लड़कियां होने के कारण संवेदनशील होती हैं, भाइयों पर अपनी ममता बरसाती हैं। त्याग, समर्पण, खट्टे-मीठे झगड़ों से बना भाई बहन का भावनात्मक रिश्ता किसी के भी जीवन की अमूल्य धरोहर होता है।
रक्षा बंधन क्या है और किस प्रकार इसे मनाना प्रचलन में है?
रक्षा बंधन के दिन बहन अपने भाई के हाथ पर एक धागा, जिससे राखी कहा जाता है, वो बांधती है। बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं, उनकी कलाई पर राखी बांधती हैं और मिठाइयों का आदान-प्रदान करती हैं। इस अनुष्ठान को करते समय बहनें अपने भाइयों की सलामती की प्रार्थना करती हैं। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और प्रतिज्ञा करते हैं कि वे उनके साथ खड़े रहेंगे और हर स्थिति में उनकी देखभाल करेंगे। दोनों भाई-बहन राखी बांधने से पहले व्रत रखते हैं।
अनुष्ठान करने के बाद ही वे भोजन करते हैं। एक तरफ बहन अपने भाई की लम्बी आयु और सद्बुद्धि की प्रार्थना करती है, दूसरी तरफ भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वचन देता है। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि यह प्रतीकात्मक त्यौहार केवल रूढ़िवादिता है। क्या भाई की किस्मत के दुःख इस प्रार्थना से टल सकते हैं? या बहन के जीवन के कष्ट आदि इस त्यौहार से खत्म हो सकते हैं। ऐसे हो तो संसार में कोई भी दुर्घटना नहीं होना चाहिये। इस त्यौहार को मानाने के पीछे कई सारी कहानियाँ भी हैं। वास्तविकता सब आज इस लेख में हम जानेंगे।
Raksha Bandhan Hindi-रक्षाबंधन की पौराणिक कथा
भारतीय संस्कृति और जनजीवन में त्यौहारों का बड़ा महत्व है। सभी त्यौहार किसी न किसी घटना से जुड़े हुए हैं। रक्षाबंधन भी इसी कड़ी में आता है। रक्षाबंधन की कहानी ऐसी है कि भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्यौहार ‘बलेव’ नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्यौहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं।
दूसरी मान्यता के अनुसार ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। उद्देश्य होता था कि ऋषि-मुनि निर्बाध होकर अपनी भक्ति या क्रियाकर्म सम्पन्न कर सकें, राजा तो वैसे भी प्रजापति और रक्षक होता है। इसी कारण से आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं।
राखी बांधते समय इन बातों का रखें ध्यान-
1. ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, राखी बांधते समय भाई को पूर्व दिशा में बैठना शुभ माना जाता है।
2. कहते हैं कि तिलक लगाते समय बहन का मुंह पश्चिम दिशा में होना शुभ होता है।
3. भाई को तिलक और राखी बांधते समय बहनों को ‘येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे, माचल-माचलः’ मंत्र का जापकर शुभ माना गया है। कहते हैं कि इससे विशेष फल की प्राप्ति होती है।
4. राखी को बांधने के बाद भाई की आरती उतारना और मीठा खिलाना उत्तम माना गया है।
5. राखी बांधते समय भाई को पीढ़े पर ही बैठाना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करना भाई-बहनों के लिए लाभकारी होता है.
आपको बता दें कि इस साल राखी पर एक विशेष संयोग भी बन रहा है। सावन के आखिरी
सोमवार पर सावन पूर्णिमा और श्रावण नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, इस महासंयोग के कारण भाई-बहनों को विशेष लाभ मिलेंगे।
क्या हो सकेगी रक्षा रक्षासूत्र/राखी से?
भाई बहन के रिश्ते का पवित्र पर्व है रक्षाबंधन , रक्षाबंधन पर सभी बहने अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई भी बहन की रक्षा का प्रण लेते हैं , इस पर्व पर शुभकामना संदेश और राखियां भी एक दूसरे को भेजी जातीं हैं। विचार करें क्या रक्षाबंधन से लोगों की रक्षा होती है? क्या कर्मबन्धन या प्रारब्ध कर्म राखी बांधने से टल जाते हैं? क्या भाई बहन के जीवन के संकट राखी के धागे से रोक सकते हैं? क्या व्यक्ति अपने भाग्य के अनुसार मृत्यु को प्राप्त नहीं होता? क्या किसी दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की बहन ने कभी उसके लिए प्रार्थना नहीं की? क्या शहीद होने वाले सैनिक की बहन उसके लिए दुआ न मांगती होगी? जानें सबके पीछे का कारण।
रक्षा कौन कर सकता है?
रक्षाबंधन लोग इसलिए मनाते है कि भाई बहन की रक्षा कर सके। किंतु रक्षा तो केवल पूर्ण अविनाशी परमात्मा कविर्देव ही कर सकते हैं। अन्यथा तीनों गुणयुक्त देव, रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव जी तो विधि के विधान से ही बंधे हैं। जब जिसकी मृत्यु होनी होती है, हो जाती है। कोई भी किसी को कुछ नहीं दे सकता। लोग परमात्मा द्वारा रचित विधान को पूरा करने के निमित मात्र बनते हैं। माता-पिता सन्तान का पालन पोषण करते हैं, यह भी कर्मबन्धन है। जीवन के सभी रिश्ते-नाते चाहे वह भाई, माता,पिता, बहन, पति, मित्र, प्रेमी आदि कोई भी हों, पिछले ऋण सम्बन्धों के कारण ही होता है। कबीर साहेब कहते हैं-
“एक लेवा एक देवा दूतम, कोई किसी का पिता न पूतम |
ऋण सम्बन्ध जुड़ा एक ठाठा, अंत समय सब बारा बांटा ||”
अर्थात सभी रिश्ते ऋण सम्बन्ध से जुड़े हैं। किसी पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। सभी अपने भाग्य का लिखा भोगने के लिए विवश हैं। यदि भाग्य से अधिक चाहिए और इस अप्रत्याशित लोक में शत प्रतिशत सुख और रक्षा की गारंटी चाहिए तो वेदों में वर्णित पूर्ण अविनाशी परमेश्वर की शरण में आएं।
हमारी रक्षा किस प्रकार हो सकती है?
यदि हमारी भक्ति शास्त्र के अनुसार है तो परमात्मा रक्षा जरूर करते है। शास्त्रानुसार भक्ति क्या होती है? शास्त्रानुसार भक्ति वह है जो वेदों पर आधारित हो। वेदों पर आधारित भक्ति कैसी? वेदों पर आधारित भक्ति का अर्थ है पूर्ण परमेश्वर कविर्देव की भक्ति करना। आज जन समाज जानता भी नहीं है कि पूर्ण परमेश्वर कौन है। पहले सँस्कृत पढ़ने का अधिकार केवल एक विशेष वर्ग को था और उन नकली गुरुओं ने अर्थ का अनर्थ बताया। वे शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को समझ नहीं सके और भोली जनता को गुमराह कर दिया।
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उनके इस कृत्य के कारण आज तक लोग अंधविश्वास और गलत पूजा विधि में फंसे हुए हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कथा पाठ करना, तीर्थ पर जाना, नदियों में स्नान करना, व्रत रखना, मंदिरों में पूजा करना आदि मोक्ष के साधन नहीं हैं और न ही ये वेदों में वर्णित विधियां हैं। वेदों में तो पूर्ण परमेश्वर कविर्देव की भक्ति किसी तत्वदर्शी सन्त से नामदीक्षा लेकर करने के लिए कहा गया है। यही बात श्रीमद्भागवत गीता में भी बताई गई है, किन्तु आज तक किसी कथावाचन करने वाले या भागवत पाठ करने वाले ने नहीं बताई क्योंकि वे तत्वदर्शी सन्त नहीं हैं और न ही वे गूढ़ रहस्यों से परिचित हैं
भावनाओं से बंधी यह डोर है, भाई बहन का प्यार अंधियारे में भी भोर है। माँ के आंचल के दो छोर हैं, एक चन्दा तो दूसरा चकोर है।।
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